राजस्थान के छोटे से कस्बे से गूगल अमेरिका मे इंजीनीयर बनने तक, रामचंद्र के संघर्ष व इस गाँव के लोगों में बसी एक दूसरे की मदद की भावना की कहानी।
“जब राम ने दसवीं कक्षा की परीक्षा में मेरिट में स्थान प्राप्त किया तभी मुझे लगने लगा था कि राम अपने जीवन में कुछ अच्छा करने वाला है,” राम की माँ, रामी देवी गर्व से बताती है।
अपनी प्रतिभा के चलते राम को राजस्थान सरकार से छात्रवृति स्वीकृति का पत्र भी मिला पर छात्रवृति की राशि कभी नहीं मिल पायी।
राम के पिता ने टीबीआई से बातचीत के दौरान बताया,“इस दौरान मैं उसे अपने साथ काम करने के लिए खेत पर ले कर गया, पर उसने कहा कि उसे पढ़ना है और फिर कभी वह खेत पर वापस नहीं आया, तब मैंने निर्णय लिया कि मैं उसे पढ़ने से बिल्कुल नहीं रोकूँगा वह जब तक चाहे तब तक मैं उसे ज़रूर पढ़ाऊंगा।”
रामचन्द्र ने आइआइटी की प्रवेश परीक्षा में तो सफलता प्राप्त कर ली थी पर अब सवाल था कि आई॰ आई॰ टी॰ की फीस व कॉउंसलिंग में लगने वाले शुल्क की व्यवस्था कैसे हो?
“मेरे लिए यह एक चमत्कार की तरह था। मेरे बचपन का एक दोस्त था, जिसके साथ मैं खेला करता था। मैं ना ही कभी उसके घर गया था ना ही कभी उसके माता-पिता से मिला। जब उन्होंने मेरे आइआइटी प्रवेश परीक्षा में सफल होने की खबर सुनी तो वे मेरे घर आए और हमें एक चैक दिया, उस चैक की राशि मेरे कॉउंसलिंग व प्रथम सेमेस्टर की फीस की भुगतान के लिए पर्याप्त थी।” इस परिवार ने राम की फीस की समस्या ही दूर नहीं की अपितु इस नई शुरुआत के लिए उन्हें कपड़े व सूटकेस लेने में भी मदद की।
“उन्होंने जो मेरे लिए किया मैं वह कभी नहीं भूल सकता। नौकरी लगते ही, जब मैं उनके द्वारा मदद के रूप में दिये गए पैसे चुकाने गया तो उन्होंने उसे लेने से मना कर दिया इसके बदले उन्होंने मुझे किसी और छात्र की मदद करने को कहा। ” कहानी यहीं खत्म नहीं होती, अपने आइआइटी प्रवेश के बाद जब राम दीपावली की छुट्टियों में घर आए तो यहाँ एक और अप्रत्याशित घटना उनका इंतज़ार कर रही थी। उनके एक पड़ोसी उनके पास आए और उन्हें अपने साथ एक सामुदायिक सभा में चलने के लिए कहा। “वहाँ कई ऐसे लोग थे जिन्हें मैं जानता तक नहीं था, जिनसे शायद कभी मिला भी नहीं था; फिर भी हैरत की बात है कि उन सब ने मिलकर मेरे लिए 30,000 रुपये इकट्ठे किए ताकि मैं एक लैपटॉप खरीद सकूँ।”
“मैं कम्प्युटर साइन्स का छात्र था। मुझे मिलने वाले कॉलेज के आइस्न्मेंट को करने के लिए मेरे पास एक लैपटाप का होना बहुत ज़रूरी था पर मेरे लिए लैपटॉप लेना संभव नहीं था। ऐसे मे इस तरह अनजान लोगो से इस उपहार का मिलना मेरे लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था। मैं अपने आपको बहुत भाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे अपने जीवन में ऐसे लोग मिले।” दूसरे सेमिस्टर की शुरुआत उनके लिए कठिनाइयाँ लेकर के आई। उन्हे दूसरे सेमिस्टर की फीस भरनी थी और इसके लिए उन्होंने अपने कस्बे सोजत में स्थित बैंक से एजुकेशन लोन लेने का निश्चय किया पर बैंक ने उन्हें यह लोन नहीं दिया ऐसे में फिर से एक बार उनके पिताजी को साहूकारो से ज्यादा ब्याज पर कर्जा लेना पड़ा ताकि रामचंद्र की पढ़ाई में कोई बाधा ना आ सके। “पापा ने कभी किसी से कुछ नहीं मांगा, जब भी हमें जरूरत पड़ी उन्होंने कर्ज लिया और उसे पुरे ब्याज के साथ चुकाया। दुर्भाग्य से हमारी व्यवस्था ही कुछ ऐसी है कि वह आर्थिक रूप से कमजोर तबके के छात्रों को जिंदगी में आगे बढ़ने से रोकती है।” आखिरकार किसी तरह उन्हें दूसरे वर्ष में एजुकेशन लोन मिल गया। पढाई में अपने बेहतरीन प्रदर्शन की वजह से उन्हें 30,000 रुपये वार्षिक की स्कालरशिप (छात्रवृति) भी मिली। अपनी पहली छात्रवृति से उन्होंने अपने पिता के लिए एक मोपेड़ खरीदी जिसे आज भी उनके पिता गर्व से चलाते हैं। अगले दो सालो की छात्रवृति के पैसो से उन्होंने अपने घर में रसोईघर और शौचालय बनवाया। 2013 में रामचंद्र ने आइआइटी से बी॰टेक कम्प्युटर साइंस की डिग्री हासिल की और साथ ही एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में बैंगलुरु स्थित गूगल इंडिया के कार्यालय में नौकरी प्राप्त की।
अप्रैल से रामचन्द्र अमेरिका में गूगल के सिएटल स्थित कार्यालय में कार्यरत हैं, उनके पिता स्वैच्छिक रूप से आज भी मेहँदी के कारखाने में काम करते हैं और उनकी माता अपने परिवार की देखभाल करती हैं। “मुझे अपने बेटे पर गर्व है। वो मुझे बार बार कहता है कि अब समय मेरे काम करने का नहीं है, अब मुझे आराम करना चाहिए। पर मुझे काम करना पसंद है यह मुझे लगता है ये मेरी सेहत के लिए भी अच्छा है,” अपने बेटे पर गर्व के साथ तेजा राम जी कहते है।
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